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थाईलैंड और कंबोडिया के बीच शांति वार्ता: एक जटिल इतिहास

थाईलैंड प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई और कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट
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थाईलैंड प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई और कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के बीच शांति वार्ता शुरू हुई एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि इन दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद और ऐतिहासिक तनाव रहे हैं.

इतिहास का बोझ – खमेर साम्राज्य, सियामी साम्राज्य

दोनों देशों के बीच तनाव की जड़ें सदियों पुरानी हैं. खमेर साम्राज्य (जो कभी कंबोडिया का हिस्सा था) अपने चरम पर थाईलैंड के बड़े हिस्से पर शासन करता था. बाद में, थाईलैंड के सियामी साम्राज्य ने खमेर भूमि पर नियंत्रण कर लिया, जिससे एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और प्रभुत्व की भावना पैदा हुई.

  • प्राचीन साम्राज्य और क्षेत्र का दावा: कंबोडियाई लोग खुद को खमेर साम्राज्य के उत्तराधिकारी मानते हैं, जो कभी एक विशाल क्षेत्र पर फैला हुआ था, जिसमें आधुनिक थाईलैंड का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल था. दूसरी ओर, थाई लोग सियामी साम्राज्य के ऐतिहासिक विस्तार का दावा करते हैं. यह ऐतिहासिक दावा-प्रतिदावा सीमाओं के निर्धारण में एक बड़ी बाधा रहा है.
  • प्रिया विहार मंदिर विवाद: यह शायद सबसे प्रमुख ऐतिहासिक मुद्दा है. प्रिया विहार मंदिर (Preah Vihear Temple) 11वीं सदी का एक प्राचीन खमेर मंदिर है जो थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर स्थित है. 1962 में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया, लेकिन मंदिर तक जाने वाले रास्ते और आसपास के क्षेत्र पर थाईलैंड अपना दावा करता रहा. 2008 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया, तो दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें हुईं, जिससे तनाव और बढ़ गया.
  • मई के अंत में एक संक्षिप्त झड़प के दौरान एक कम्बोडियाई सैनिक की हत्या के बाद से थाईलैंड और कम्बोडिया के बीच तनाव बढ़ गया है।

राजनीतिक अविश्वास और राष्ट्रवाद

दोनों देशों में राष्ट्रवादी भावनाएं अक्सर नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग की जाती हैं, जिससे सुलह मुश्किल हो जाती है.

  • घरेलू राजनीति का प्रभाव: थाईलैंड और कंबोडिया दोनों में राष्ट्रवादी नेता अक्सर सीमा विवादों को अपनी राजनीतिक रैलियों और चुनावी अभियानों में भुनाते हैं. इससे दोनों देशों के नागरिकों में एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक धारणाएँ बनती हैं और सरकार के लिए समझौता करना मुश्किल हो जाता है.
  • सैन्य हस्तक्षेप: थाईलैंड की राजनीति में सेना का मजबूत प्रभाव रहा है, और सीमा विवाद अक्सर सैन्य हस्तक्षेप का एक बहाना बन जाता है.

आर्थिक महत्वाकांक्षाएँ

  • संसाधन और व्यापार मार्ग: थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा के पास खनिज संसाधन और संभावित तेल व गैस भंडार होने का अनुमान है. इन संसाधनों पर नियंत्रण की इच्छा दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाती है. इसके अलावा, सीमावर्ती क्षेत्र व्यापार और तस्करी के महत्वपूर्ण मार्ग भी हैं.
  • पर्यटन: प्रिया विहार मंदिर जैसे विवादित स्थलों से होने वाली पर्यटन आय भी आर्थिक हित का एक बिंदु है.

वैश्विक और क्षेत्रीय पहलू

हालांकि ये मुद्दे मुख्य रूप से द्विपक्षीय हैं, पर कुछ हद तक आसियान (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय संगठनों और अन्य वैश्विक शक्तियों का भी इन पर प्रभाव रहता है. आसियान सदस्य देशों के रूप में, वे क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए दबाव में रहते हैं.

  • आसियान की भूमिका: दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) दोनों देशों को बातचीत के लिए प्रोत्साहित करता रहा है, क्योंकि क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना आसियान के लिए महत्वपूर्ण है. हालांकि, आसियान आमतौर पर सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप नहीं करता.
  • चीन का प्रभाव: चीन इस क्षेत्र में एक बढ़ती हुई शक्ति है और उसके दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध हैं. चीन की भूमिका अप्रत्यक्ष रूप से शांति वार्ता को प्रभावित कर सकती है, खासकर आर्थिक निवेश के माध्यम से.
  • वाशिंगटन का प्रभाव: ब्लूमबर्ग के अनुसार, ट्रम्प ने चर्चा से पहले कहा था कि थाई और कंबोडियाई नेता “शीघ्र ही युद्धविराम” पर सहमत हो गए हैं। वाशिंगटन के शीर्ष राजनयिक मार्को रुबियो ने कहा कि विदेश विभाग के अधिकारी “शांति प्रयासों” में सहायता के लिए मलेशिया में मौजूद हैं, जबकि कंबोडिया ने कहा कि उसके करीबी सहयोगी चीन का एक प्रतिनिधिमंडल भी इसमें शामिल होगा। समस्या का समाधान और आगे की राह

इन जटिल समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने के लिए कई पहलुओं पर काम करना होगा:

  1. सीमांकन और सीमा निर्धारण: सबसे महत्वपूर्ण कदम विवादित सीमा क्षेत्रों का स्पष्ट और आपसी सहमति से सीमांकन करना है. इसमें तकनीकी विशेषज्ञता और कूटनीतिक धैर्य दोनों की आवश्यकता होगी. प्रिया विहार मंदिर के आसपास के क्षेत्र का भी स्पष्ट निर्धारण होना चाहिए.
  2. संयुक्त आर्थिक विकास: विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों को संघर्ष का कारण बनाने के बजाय सहयोग का क्षेत्र बनाया जा सकता है. दोनों देश मिलकर इन क्षेत्रों में संयुक्त आर्थिक परियोजनाएं (जैसे पर्यटन विकास, बुनियादी ढांचा या संसाधन साझाकरण) शुरू कर सकते हैं. इससे स्थानीय आबादी के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे और शांति में आर्थिक हित जुड़ेंगे.
  3. लोगों से लोगों का संपर्क (People-to-People Contact): सांस्कृतिक आदान-प्रदान, छात्र विनिमय कार्यक्रम और पर्यटन को बढ़ावा देकर दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी समझ और विश्वास को बढ़ाया जा सकता है. यह राष्ट्रवादी भावनाओं को कम करने में मदद करेगा.
  4. कूटनीतिक वार्ता और मध्यस्थता: शांति वार्ता को लगातार जारी रखना और आवश्यकता पड़ने पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (जैसे आसियान) या मित्र देशों की मध्यस्थता का उपयोग करना महत्वपूर्ण है.
  5. इतिहास की साझा समझ: दोनों देशों को एक ऐसा मंच बनाना चाहिए जहाँ वे अपने इतिहास की साझा और अधिक संतुलित व्याख्याओं पर चर्चा कर सकें. यह एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने में मदद करेगा और भविष्य के लिए एक स्वस्थ नींव रखेगा.
  6. सेना की भूमिका को कम करना: थाईलैंड और कंबोडिया दोनों को सीमा विवादों में सैन्य हस्तक्षेप को कम करने और राजनीतिक तथा कूटनीतिक समाधानों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है.

संक्षेप में, थाईलैंड और कंबोडिया के बीच शांति वार्ता तभी सफल होगी जब वे ऐतिहासिक विवादों को सुलझाने, राजनीतिक अविश्वास को कम करने, आर्थिक हितों को साझा करने और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करेंगे. यह एक लंबी प्रक्रिया होगी, लेकिन स्थायी शांति के लिए यह अनिवार्य है.


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